Thursday 6 February 2014

अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता

ग्यारह खिलाडियों ने ये तय किया है कि आगामी प्रधानमंत्री पदक के लिए साथ में क्षेत्र-रक्षण करेंगे। विरोध में बस दो बल्लेबाज हैं, और एक रनर भी। पर, यह रनर दौड़ किसके लिए रहा है, पहेली है।अंपायर या तो कोई नहीं, या ,एक, वो भी  अक्षम ; और दर्शक बहुत सारे, पर सब मूक, सब दिग-भ्रमित, सारे किंकर्तव्यविमूढ़।

जब किसी से बात बनी नहीं, या सपनों को पंख नहीं मिले, या पंख कुतर दिए गए, या अपनी मिटटी पलीद होती दिखी,तब ख्याल आया नया दल बनाने का। दाल नहीं गली तो क्या हुआ, दल ही सही, बस एक मात्रे की ही तो कमी है, ख्याली पुलाव तो बन ही जायेगा--कड़वा, अस्वादिष्ट,अनपेक्षित,असमय  व  अतर्क़संगत।

और डरने की क्या बात है, एक ही बल्लेबाज़ तो   फॉर्म में है, दूसरा बुरे दौर से गुज़र रहा है, और जो रनर है, वो बल्लेबाज़ी तो कर ही नहीं सकता, बस दौड़ सकता है, सो, यही मौका है अपनी दाल पकाने की।

पर, सामंजस्य बैठना टेढ़ी खीर होगी, क्योंकि इस टीम में सब कप्तान हैं, उप-कप्तान कोई नहीं। अब फील्डिंग कैसी होगी, और  टीम का प्रदर्शन कैसा होगा यह सोच का विषय हो सकता है। १९८९ में भी इनलोगों ने एक टीम बनायीं थी, नहीं चली, ९८-९९ और सन २००४ में भी बनाने कि कोशिश की, बनी तो थी पर चली नहीं, और जिसकी जिधर दाल गली, उधर शामिल हो गया भोज में।

साथ में घी पिया तो कोई आपत्ति नहीं, पर सपने टूटते नज़र आये तो नाता ही तोड़ लिया। दूसरा, अब भी घी पी रहा है, पर शेखी बघार रहा है कुछ और की। पता नहीं , कुछ ने तो फील्डिंग में नए नुस्खे भी अपनाएं हैं, पैकर जैसी , पैकर के दुस्साहस ने विश्व क्रिकेट का प्रारूप ही बदल दिया, अब ये लोग भारतीय राजनीती की बदलेंगे। जो भी हो, नतीज़ा जैसा भी हो, डफली लेकर क्षेत्र-रक्षण करने के दो फायदे हैं, अपना समय भी बीतेगा और लोगों का मनोरंजन भी होगा। अब, तारतम्यता कितनी होगी इस नयी-नवेली, अद्भुत,अनोखी, अप्रतिम और कप्तान रहित टीम में इसकी मत सोचिये, ये सोचिये कि प्रधानमंत्री की कुर्सी तो एक ही है, तो क्या अभी जो कुर्सी है, उसे तोड़कर ग्यारह नयी कुर्सियां बनेगीं , जिनमे कुछ न कुछ हिस्सा पुरानी  कुर्सी का होगा ?

 सोचिये, समझिये और कल्पना कीजिये, क्या वीभत्स संगीत-ध्वनि निकलेगी जब सब अपनी डफली अपना राग अलापेंगे। २७२ का आंकड़ा पार करने के लिए अपनी संख्या आये न आये, दोनों बल्लेबाज़ अगर मिलकर २७२ के आंकड़े से पीछे रहे, तब दिखेगी करामात, तोड़ने-जोड़ने और विध्वंस की। तब, अछूत और सांप्रदायिक का भाव मिट जायेगा, क्योंकि तब राष्ट्र-भावना एवं जनहित के परदे के पीछे सब नाचेंगे, मदमस्त होके, और गाना बजेगा--अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता। 

No comments:

Post a Comment