Tuesday 1 April 2014

नागनाथ, सांपनाथ और भूतनाथ !

ना, बिल्कुल नहीं। मेरे शीर्षक राजनीति से प्रेरित नहीं हैं। और अगर आपको लगता है कि है तो वैसा ही सही। अरे भाई, ये सब भोले बाबा का नाम है। संहारकर्ता भगवान् भोले शंकर का। अब समझे ? ठीक है  

कल मैंने सपना देखा कि भगवान् थोड़े चिंतित थे। भक्तो कि टोली गुहार लगा रही थी, पर बाबा के चेहरे पे कोई असर नहीं। वो तो कहीं और की सोंच रहे थे। एक बुजुर्ग , जो भोले बाबा के अनन्य भक्त थे के पूछने पे बाबा बोले:-

"वत्स!" ,"भैरों मिल नहीं रहे, अचानक बढ़ा हुआ  कोलाहल शान्ति भंग तो कर रहा है, पर, जो मैं देख पा रहा हूँ, उससे मैं ज्यादा व्यथित हूँ। पहले हर हर महादेव ! लोगों कि रगों में नयी स्फूर्ति और देव-भावना  बढ़ाने के काम आती थी, अब ये 'हर हर' शब्द भी लूट ली गयी है  भी व्याक्ति पूजा में लग गयी है और व्यक्ति पूजक एवं महिमामंडक विशेषण बन गयी है। 

अभिनेताओं के मंदिरों से जितनी मानशिक अशांति नहीं हुई, उससे ज्यादा अब हो रही है। निश्चित ही जनसँख्या के साथ मेरे भक्तों कि संख्या भी बढ़ी है , पर , इनमे सच्चे बड़े कम हैं। और ये जो नाथ है शब्द है, जहाँ भी लगा है, उससे मुझे कोई परेशानी नहीं ,और लोगों को भी नहीं होनी चाहिए, आखिर , अंबिकानाथ और गणनाथ भी तो मेरा ही नाम है।

सबलोग हवा के रुख पे ध्यान दिए बिना, मताधिकार का प्रयोग करें, और उसे चुनें जो सब कसौटी पे खरा हो; चोर, धोखेबाज़ या नाकारा न हो , तो फिर देखो, मेरे हस्तक्षेप के बिना ही कैसे बदलती है हवा। चुनावों तक हिमालय में--मतलब धौलागिरि में--इस हो-हल्ला से दूर रहना ही श्रेयस्कर है।  तुम सबलोग अपने अधिकार का प्रयोग करो, आखिर, विकल्प भी तो कम हैं। पर इतना अवश्य है कि ये लूट-खसोट अपने पूर्व-वर्ती जैसा नहीं करेंगे। और मैं हूँ न । नित नए नए रूप पे आता रहूंगा । और जैसा मैंने दिल्ली में किया, कहीं भी कर सकता हूँ।  समझे वत्स ?"

भक्त-"जी प्रभु", हर हर महादेव ! 

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