Saturday 5 April 2014

जागो मतदाताओं(मोहन प्यारे), जागो !

धक्के खाये, स्याही पुतवाई, घूसा खाया, कार का शीशा तुड़वाया, भूखे रहे, अनशन किया, नौकरियाँ छोड़ी, प्लेटफार्म पर सोया, सूचना का अधिकार दिलवाया, भैरों बाबा का आशीर्वाद लिया, सेक्युलर टोपी पहनी, सरकार गवाई, और न जाने क्या-क्या किया; पर, ये भारत की जनता है कि जागती ही नहीं। अज़ब कुम्भकर्णी नींद है इसकी। हनुमान जी कि तरह पूछ में आग लगाई है, पुरे भारत को इस ईमानदारी कि आग में जलाऊंगा। और अगर फिर भी नहीं जागी जनता, तो संन्यास ही ले लूँगा। तब जाग जायेगी शायद।

 जागो भारतवासिओं, जागो ! इसके पहले के बहुत देर हो जाये, ऐसे अद्भुत, ईमानदारी कि प्रतिमूर्ति कि खातिर जागो। जागो !, नए  सवेरे के लिए जागो ! ढॉंगीओं को सबक सीखने के लिए, विकास, धार्मिक सौहार्द्र, सहनशीलता और बदलाव के लिए जागो ! सुनहरे मौके दरवाज़े पे बार-बार दस्तक नहीं देते , स्वागत करो उनका, जिनकी सोच सर्व-सुखकारी है। और गले लगा लो उन्हें जो वैश्विक सोच रखते हैं, संकीर्ण और मतभेद और वैमनस्य पैदा करने वाले नहीं।

और उनके लिए, जिनका हवाला मैंने शुरुआत में दिया है, श्री सोहन लाल द्विवेदी कि ये कविता नयी स्फूर्ति और प्रेरणा देगी :-


खड़ा हिमालय बता रहा है 
डरो न आंधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल हो कर 
सब संकट तूफानी में।

डिगो ना अपने प्राण से, तो तुम 
सब कुछ पा सकते हो प्यारे,
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो,
छू सकते हो नभ के तारे।

अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको,
जीने में मर जाने में।
 
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सोहन लाल द्विवेदी

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