Wednesday 15 January 2014

अक्कड़ बक्कड़ दिल्ली बो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी नब्बे पुरे सौ, सौ में लगा धागा, चोर निकाल के भागा ! तो भइया ये पंक्तियाँ तो बहुतों को अभी भी याद होगी, पर आइए इसमे कुछ नया किया नहीं समझा जाए, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ।  अब बम्बे को दिल्ली किया जाए और अस्सी नब्बे को पैंतीस छत्तीस . आया समझ में?

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो,  पैंतीस छत्तीस पूरे हों ,
आप  में लगा  धागा , चोर निकल के भागा।

अब बहुमत है, सरकार है, मीडिया है, ताम-झाम है, करने और दिखने का मैदान है, लोग हैं, लोगों की अपेक्षाएं हैं, पर धागा(यानि कि डोरी, नाडा भी समझ सकते हैं) तो कोंग्रेस् ने पकड़ रखी है, सो, बेचारे ईमानदार युगपुरुष कसमकश में हैं, ज्यादा लंबी छलांग लगाई कि नाडा टूटा, और...फिर वीआईपी चड्डी सबको दिख जायेगीऔर टूट जयेगा तिलिस्म।  साथ टूटेंगी वो दिव्य दृष्टि भी जिसमे सबको त्रैलोक्य-चिंतामणि पिलाने की ख्वाहिश थी, और देश को दस हज़ार साल पहले के युग में ले जाने कि कल्पना भी धरी कि धरी रह जायेगी ।  

इंजीनियरिंग की, पर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नगण्य योगदान दिया, भारत सरकार के राजस्व विभाग में संलग्न हुए, योगदान का पता नहीं, शून्य ही होगा. अब राजनीति में संलग्न किया है खुद को , नतीजा-- भोला जाने काया होगा आगेजिन लोगों का बर्तमान में अस्तित्व कि पार्टियों से मोह-भंग हो गया है, या मनचाही कुर्सी नहीं मिली, या जो अपने कार्यक्षेत्र से नाखुश है, उनकी ईमानदारी कि नैया में सवार हो गए हैं, और सवार हो भी रहे हैं, बडी तीव्र गति से, ताकि एक नया मुकाम पा सके जीवन में ।  समाज और देश का भला हो ना हो, अपना, अपने खानदान, और परिवार का भविष्य तो पक्का हो ही जायेगा ।

मीडिया वाले भी, डोंगी में बैठ गए हैं, पाल्थी मार के, ताकि नए आयाम गढे जाएँ, ईमानदारी के बहाने. पहले भी लोगों को टोपी पहनाते थे , अब भी पाहनायेंगे स्वराज वाला. क्या होगा? देश किधर जायेगा?, सज़ा किसे मिलेगी? कैसे मिलेगी? कबतक मिलेगी? इन सब सवालों से महत्वपूर्ण है कि आप  को क्या मिलेगा? और कितना मिलेगा?

चलिये, 500 करोड़ में चाल, चरित्र और चेहरा चमके ना चमके, कुछ लोगों को नौकरी और काम तो मिल ही जायेगा।  तो तैयार हो जाइए, नए नए पैंतरे  देखने और तालियाँ बजाने के लिए, क्योंकि लोकतंत्र का महपर्व जो आ रहा है, नए कलेवर और नए रूप में, सबकी बाट, ना ना चाट, ना ना खाट, ना ना हाट लगाने. वैसे चोर निकाल के तो कब का भाग चुका है. रुकिए, कहाँ चले,पञ्च लाइन तो पढ़ लीजिये-- न नौ मन तेल होगा न राधा रानी नाचेगी। टीवी पर गाना आ रहा है- फिर वही शाम वही  ग़म, वही तन्हाई है ।  

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