Tuesday 21 January 2014

गुनहगार कौन ?

चार बार में मैट्रिक पास किया तो क्या हुआ ? सारे देश को उसका सौ गुना परीक्षा दिलवाऊंगा। यही सोच रहे हैं देश के वर्त्तमान गृह मंत्री शायद। तभी तो इतना बड़ा झमेला चुपचाप देख रहे हैं , अपने कार्यालय कि खिड़की से, और तबतक देखते रहेगे जबतक कोई पत्थर उनके सर पे आके न गिरे। फिर, उस पत्थर के पीछे पूरा महकमा लग जायेगा या लगा दिया जायेगा। किसका हाथ था ? कौन लोग थे ? आप वाले आतंकवादी हैं, वगैरह-वगैरह।

स्वतंत्रता के बाद शायद ही कोई ऐसा निठल्ला गृह मंत्री बना हो, या बने। कमाल का व्यक्तित्व, आदर्श घोटाले  में नाम, मुज़फ्फरनगर में अकर्मण्यता जग-जाहिर ,चीनी घुसपैठ पे चुप, पाकिस्तान के दुस्साहस पे चुप। वाह ऊपर वाले। क्या सोच और सक्रियता से लबरेज़ गृह मंत्री दिया भारत को, जो अति-महत्वपूर्ण मुद्दों पे तो पार्टियों में ठुमके लगता है, पर अल्पसंख्यक वोटों के लिए अतिच्छुद्र व्यक्तव्य देता है। अब, दिल्ली में उनके द्वारा कोई ठोस कदम उठाया जायेगा, महज़ बेईमानी होगी, मिथ्या स्वप्न।

दुःख है दिल्लीवासिओं के लिए, जो कांग्रेस की नियत बिना समझे, नुक्कड़ सभाओं में केजरीवाल जी को सरकार बनाने की सलाह देते थे। या, केजरीवाल जी बाकि सब सम्भावनाओं को दरकिनार कर उस वास्तविकता को नहीं समझ पाये, जो मुह बाये उनका इंतज़ार कर रही थी। अब ये दिन तो देखना ही था , कोई वास्तविक आधार जो नहीं था, सरकार गठन के लिए। मतलब अभी दो-चार दिन और चलेगा ये नाटक, फिर पटाक्षेप हो जायेगा इस क्षण-भंगुर पराक्रम का और पराक्रमी का , पर अफ़सोस ! सातवां द्वार अभी और कुछ दिन अकछुन्न रहेगा , अटूट मगर भेद्य--नमो द्वारा।   

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