Thursday 30 January 2014

सिर्फ़ सुरक्षा नहीं सर्वांगीण विकास ज़रूरी

कल उन्हें सुना, बड़े ही सुदृढ़ शब्दों में, नापाक की तो कल्पना करना ही बेईमानी है, अल्प-संख्यक असुरक्षित महसूस न करें हिंदुस्तान में। अरे भाई, वैदिक काल से ही हमारी परंपरा रही है-'जिओ और जीने दो' । अन्यथा इतने जो उथल पुथल हुए इस देश में कदापि न होते। इतना मार-काट, कत्लेआम, लूटपाट बिलकुल नहीं होता। तो, फिर असुरक्षित कौन है ? ये बड़ा, महत्वपूर्ण और अहम्  प्रश्न है। वो जो दो टुकड़े लेके भी, या वो जो दो टुकड़े दे के भी। बंद कीजिये राजनीति के नाम पे ये बुझ-बुझौअल। हम सब असुरक्षित हैं, आपके द्वारा पुष्पित-पल्लवित वातावरण में, या फिर कोई नहीं है, या फिर फायदे  के लिए असुरक्षित होने का बहाना बना रहे हैं या  फिर चादर ओढ़ के घी पीते रहना चाहते हैं । सारा सरकारी तंत्र और तामझाम, जिनके इर्द-गिर्द नृत्य कर रहा है, वो असुरक्षित हैं ? हास्यास्पद लगता है। सांप्रदायिक , सांप्रदायिक करके भी चारो राज्यों को बचा पाये क्या? नहीं ना, तो फिर ये दम्भ है या मन का बहलावा ?दस वर्ष क्या बासठ साल भी कम पड़े हैं, आपको सबको सुरक्षित महसूस करवाने में, क्या लगता है अगला पांच-वर्ष काफी होगा उनको जिनकी आपकी इतनी चिंता है, सुरक्षित करने में ?

                                 कट्टर सोच किसकी है, ये दिख रही है, युवा जोश तो अपना इरादा प्रकट कर ही चुकी है, कुछ उनके बारे में भी तो बोलिये जिनकी जनसँख्या एक अरब है भारत में ।  क्यूँ?क्या वो आपको वोट नहीं देते ? सिर्फ पच्चास लोक-सभा क्षेत्रो में ही अल्प-संख्यक परिणाम प्रभावित कर सकते हैं, बाक़ी का क्या ? अब मान जाइये परम आदरणीया, संत-रूपा, ममता कि प्रतिमूर्ति , आनदमयी, मातृस्वरूपा  कि आने वाला पल बहुसंख्यकों का है। फिलहाल, उन्हें आशीर्वाद दीजिये कि वो अगला पाँच वर्ष सकुशल सिर्फ जैसे-तैसे सरकार न चलायें, अपितु कुछ आम जनता के हित में कार्य भी करें और भारत को नयी उचाईयों पर ले जाएँ हर क्षेत्र में। । इससे आपकी एवं आपके युवा जोश धारक को समय भी मिलेगा आत्मा-मंथन के लिए और शांति भी, जिसकी आपको सख्त ज़रुरत है।

                                   वैसे, ऐसा नहीं है कि आपकी पूर्व-वर्ती सरकारों ने कार्य नहीं किया, किया है, तभी तो आज हम यहाँ हैं, पर और होती तो और अच्छा होता। पर, जिन परिस्थितियों में अपने अपनी इस सरकार को चलाया है, क़ाबिले तारीफ़ है, कोई और शायद ही कर पाता। पर, रुझानों से तो ये प्रतीत हो रहा है कि अगर अबकी बार फिर, लँगड़ी-लुल्ही सरकार येन-केन प्रकार बनी, तो हेन-तेन ज्यादा होगी, विकास कम। क्योंकि आपकी सारी शक्ति तो कुर्सी बचाने में लगी रहेगी, जैसी इस बार हुई, और सहयोगी घी पीते रहेंगे चादर ओढ़ के। जनता को तो असक्त करने के विधेयक में तो इतनी ताक़त ज़रूर है कि सब,(अल्प-संख्यक ज्यादा) आसक्त हो गए हैं आपके हाथ पे। चलिए , अंत में भगवान् से प्रार्थना, नम्र-निवेदन भी कर ही लूं कि आपकी सोच में बदलाव लाएं और  सबके लिए सुरक्षा ही नहीं सर्वांगीण विकास  आपके लिए सर्वोपरि हो, सिर्फ अल्पसंख्यको की सुरक्षा  नहीं। 

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