Thursday 16 January 2014

ज्यादा जोगी मठ उजाड़ !

एक टीवी कार्यक्रम  में सुना था, अब सही प्रतीत हो रहा है--खुदी को कर बुलंद इतना ,चढ़ा वोह जैसे तैसे , ख़ुदा ने बन्दे से पूछा , बन्दे अब उतरेगा कैसे? अभी कुछ ही दिन हुए हैं, और आप की सभाओं में, लात-जूते, घूसे और कुर्सीआं अपना नया रूप और प्रयोग  देख कर हैरान हैं , और परेशान है आम जनता, ये लोग बदलेंगे भारत कि तस्वीर, तक़दीर और तदवीर?

हृषिकेश और कुरुक्षेत्र में जो हुआ, वो तो ट्रेलर था, पूरी फ़िल्म तो अभी बाक़ी है, बिन्नी साहब ने तो नाकों में दम कर रखा है। इतने सारे दर्द क्या कम थे कि अब आपस में निबटना शुरू कर दिया है, नयी नवेली पार्टी के नए नवेले चेहरों ने?

अब आगे आगे देखिये होता है क्या, माननिये केजरीवाल जी ने ईमानदार लोगों का जखीरा बनाया है, या बनाने कि कोशिश कर रहे हैं, खतरा है कि कहीं इसका हाल, ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली न हो जाये। अब बुद्धि-जीविओं कि फ़ौज़ में, टकराव तो होना ही  है, सब ईमानदारी के रथ को अलग-अलग दिशा में मोड़ने कि कोशिश तो करेंगे ही, सो प्राकृतिक है ये सब। बस इस ऊर्जा को संचययित और दिशा देने कि जरूरत है, दे दीजिये, इसके पहले कि आपका तिलिस्म टूटे।

कप्तान  गोपीनाथ जी कुछ,तो मल्लिका जी कुछ तो विश्वास जी कुछ बड़बड़ा रहे हैं। सब लगे हैं, लोकतंत्र-लोकतंत्र खेलने में, वैसे यह टीम ट्वेंटी-ट्वेंटी तो छोड़िये, एक-एक ओवर भी खेल ले तो गनीमत समझिये। और हाँ , आप पार्टी ने फैसला किया है कि अगली बार से सभाओं में, नंगे पाँव आके जमीन पे बैठना होगा, इससे दो चीजें होगी, जूते -चप्पलों का दुरुपयोग भी नहीं होगा, और कुर्सियों की कीमत भी अनायास नहीं चुकानी पड़ेगी। ज़मीन पे रहके, जमीनी होने का एहसास भी होगा। आशुतोष जी कि बदहवासी में भागती तस्वीर आज अख़बार में देख के अनायास ही मन में आया --' अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे' । बहुत रुलाया और सांसत में डाला करते थे  साक्षात्कार देने वालों को, अब खुद सांसत में हैं , पता चला आटे-दाल का भाव?

मन जाइये, आशुतोष जी, पहले वाला काम ज्यादा खूबसूरत, दमदार और धांसू था, भ्रष्टाचारी आपसे डरते थे, अब तो बच्चे भी नहीं डर रहे। पुनर्विचार कीजिये, समीक्षा कीजिये अपने फैसले पे। अभी जूतों-चप्पलों के बीच जो आप कर पा रहे हैं, क्या इससे ज्यादा जिम्मेदारी भरा काम क्या आप नहीं कर रहे थे ?

हो सकता है अभियान पे जाने की इच्छा कभी रही हो मन में, सो उस इच्छे को तो पूरी नहीं कर रहे? जो भी हो, पहले आपकी शैली का मैं कायल था, बहुत सारे लोग भी होंगे मेरी तरह, अब रैली का हो रहा हूँ, और लोग भी हो रहे होंगे, या दुर्दशा पे हंस रहे होंगे, आपकी नहीं, हमारी। अच्छा समय बीतता था आप जैसों का कार्यक्रम देख के। और ये क्या ? पुण्य-प्रसून जी ,रवीश जी,  राहुल कँवल जी(और  अन्य लोग भी )जैसे पुण्य-आत्मा अनुगृहीत हो रहे हैं आपका कि आपने उन्हें ऐसा कदम भविष्य में न उठाने कि नसीहत जो दे डाली है --गाहे-बगाहे।

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